
चंद्रयान-2 ने पूरे साल लगाए चांद के चक्कर, जानिए अबतक क्या हुआ हासिल
हाइलाइट्स:
- 22 जुलाई 2019 को लॉन्च किया गया था चंद्रयान-2 मिशन
- ऑर्बिटर ने चांद के चक्कर लगाते-लगाते एक साल पूरा किया
- सारे सिस्टम्स ठीक काम कर रहे, अभी 7 साल का र्इंधन बाकी
- सॉफ्ट लैंडिंग नहीं कर पाया था चंद्रयान-2, लैंड विक्रम खो गया था
भारत के चंद्रयान-2 को चांद को निहारते सालभर से ज्यादा हो चुके हैं। उसकी तबीयत बिलकुल ठीक है और अभी सात साल का ईंधन उसके भीतर मौजूद है। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) का कहना है कि ऑर्बिटर अबतक 4,400 से ज्यादा चक्कर लगा चुका है। उसके सारे इंस्ट्रुमेंट्स दुरुस्त हैं और सही से काम कर रहे हैं। यानी स्प्रेसक्राफ्ट की सेहत बढ़िया है और वह 7 साल और चलेगा। ISRO ने कहा कि चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर को चांद की ध्रुवीय कक्षा के 100 +/- 25 किलोमीटर के दायरे में रखा गया है।
अबतक 17 बार मेंटेनेंस मैनूवर्स
22 जुलाई 2019 को लॉन्च किए गए चंद्रयान-2 के रोवर की चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो सकी थी। मगर उसके साथ गए ऑर्बिटर को सफलतापूर्वक चांद की कक्षा में स्थापित किया गया था। ISRO के मुताबिक, ऑर्बिटर से अबतक 17 बार पाीरियॉडिक ऑर्बिट मेंटेनेंस मैनूवर्स हो चुके हैं। चंद्रयान-2 मिशन भारत की पहली कोशिश थी कि दक्षिणी ध्रुव जहां अबतक कोई स्पेसक्राफ्ट नहीं गया है, वहां सॉफ्ट लैंडिंग की जाए। लेकिन लैंडर विक्रम इसमें सफल नहीं हुआ। उससे संपर्क टूट गया। बाद में उसे एक भारतीय छात्र ने ढूंढा।
चांद का यूं चक्कर लगाता है ऑर्बिटर
ऑर्बिटर की लंबी उम्र से क्या फायदे
ऑर्बिटर ने जो डेटा कलेक्ट किया है, ISRO उसे पीयर रिव्यू के बाद पब्लिश करेगा। चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने अच्छा-खासा डेटा भेजा है। उसमें हाई-रेजोल्यूशन कैमरे लगे हैं जो चांद की सतह और बाहरी वातावरण के अध्ययन में बहुत मदद करते हैं। ऑर्बिटर की लंबी उम्र होने से दुनियाभर में चांद पर मौजूदगी की जो रेस लगी है, उसमें भारत लगातार बना रहेगा। ISRO ने यह स्पेसक्राफ्ट चांद के बारे में भौगोलिक जानकारी हासिल करने के लिए लॉन्च किया था।

ऑर्बिटर से ली गई चांद की सतह की तस्वीर
ऑर्बिटर ने भेजीं हैं सतह की तस्वीरें
ऑर्बिटर हाई रिजोल्यूशन कैमरा (OHRC) ने चंद्रमा की सतह की तस्वीरें ली हैं। चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई से ली गईं ये तस्वीरें चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में स्थित बोगस्लावस्की ई क्रेटर और उसके आस-पास की हैं। इसका व्यास 14 किलोमीटर और गहराई तीन किलोमीटर है। इसरो ने कहा कि तस्वीरों में चंद्रमा पर बड़े पत्थर और छोटे गड्ढे दिख रहे हैं।

ऐसी है चांद की सतह
98% सफल रहा था चंद्रयान-2 मिशन
ISRO चीफ ने पिछले साल कहा था कि यह मिशन 98 प्रतिशत सफल रहा है। उन्होंने कहा था, “प्रॉजेक्ट को दो भागों में विकसित किया गया है- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रदर्शन। हमने विज्ञान उद्देश्य में पूरी सफलता अर्जित कर ली है, जबकि प्रौद्योगिकी प्रदर्शन में सफलता का प्रतिशत लगभग पूरा हो गया है। इसलिए परियोजना को 98 प्रतिशत सफल बताया जा सकता है।”